क्या आप भी रुपए-पैसे से जुड़ी ये ग़लतियां करते हैं, तो इस खबर को पढ़ना न भूलें

Kumari Mausami
कभी किसी ज्योतिष को हाथ दिखाया है? लगभग 99% लोगों को पंडित जी कहते हैं,‘तुम पैसे तो ख़ूब कमाओगे, पर बचा नहीं पाओगे.’ इस अकाट्य वाक्य का क्या अर्थ है? क्या उन्होंने सच में आपका भ‌विष्य देख लिया है? जी नहीं, पंडित जी ज्योतिष के ज्ञाता हो न हों, पर इंसानी फ़ितरत के ज्ञानी तो हैं ही. पैसे को हाथ की मैल कहनेवाले ज़्यादातर भारतीयों पर पंडित जी का यह ब्रह्म वाक्य सटीक बैठेगा, क्योंकि हममें से ज़्यादातर लोग प्रॉपर फ़ायनैंशियल प्लैनिंग उसी को कहते हैं, जिसमें कमाई और ख़र्च का हिसाब बराबर हो जाए. यानी कम से कम कमाई से अपने ख़र्च तो पूरे हो जाएं.  



अगर आप अपनी बैलेंसशीट को स्ट्रॉन्ग बनाना चाहते हैं तो आपको इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा. और इससे बाहर निकलने का रास्ता तभी दिखेगा, जब आपको इन आम ग़लतियों के बारे में पता चलेगा, जो जाने-अनजाने हम सभी करते हैं. 


पहली ग़लती: आप ज़्यादा से ज़्यादा अगले 30 दिनों के बारे में सोचते हैं
ख़ुशहाल जीवन की सबसे अच्छी फ़िलॉसफ़ी हमें बताती है ‘हर पल यहां जीभर जियो’ इसे हम थोड़ा मॉडिफ़ाई करके इस तरह लेते हैं कि आज के लिए जियो. यहां आज के लिए का मतलब है अगले 30 दिनों के लिए जियो. हम जो कुछ भी कमाते हैं उसे इस तरह प्लैन करते हैं कि 30 दिनों तक चले. होता यह है कि 20 दिनों में ही अकाउंट ख़ाली हो जाता है. बाक़ी के 10 दिन 50 दिनों की तरह बीतते हैं. आज के लिए जीना फ़िलॉसफ़ी के हिसाब ठीक है, पर रुपए-पैसे के लिहाज़ से यह सोच उतनी कारगर नहीं है. 



तो क्या करें? 
बेशक आज के लिए जिएं, पर कल की भी सोचें. अगर आपके पैसे 30 के बजाय 20 दिनों में ही ख़त्म हो रहे हैं तो झोल आपकी प्लैनिंग में ही है. आप इतने कम समय की योजना बना रहे हैं, वही भी कारगर नहीं है तो भविष्य का क्या होगा? आप बहुत दूर की नहीं तो भी कम से कम निकट भविष्य की योजना तो बनाकर ही चलें. अपनी आय और ख़र्च पर दोबारा नज़र डालें. किसी भी स्थिति में आपको अपनी आय का कम से कम 12 प्रतिशत हिस्सा भविष्य के लिए निवेश करना चा‌हिए. और हां, तात्कालीन आपातकाल के लिए एक इमर्जेंसी फ़ंड ज़रूर बनाएं. 


दूसरी ग़लती: आपको ख़ुद से ज़्यादा लोन पर भरोसा करना  
आज हमारे पास दुनिया की सारी सुख-सुविधाएं हैं, पर एक चीज़ ज़रा भी नहीं है... और वह है सब्र. नौकरी शुरू की नहीं, अपनी वो अधूरी इच्छाएं पूरी करने में लग जाते हैं, जो लंबे समय से मन में दबी थीं. हमें महंगे फ़ोन चाहिए, ड्रीम कार चाहिए और वेकेशन भी, पर पैसे होते नहीं. ऐसे में हमारी मदद के लिए आगे आते हैं बैंक, जो आसान किश्तों पर हमें लोन उपलब्ध करा देते हैं. आसानी से अपना सपना साकार होने की ख़ुशी मनाने के बाद जल्द ही आपको एहसास होता है कि आप तो क़र्ज़ के चंगुल में बुरी तरह फंस गए हैं. उसके बाद पसंद हो न हो, नौकरी करनी ही पड़ती है. काम से ब्रेक लेकर जिस नई स्किल को सीखने के बारे में सोच रहे थे, वह लंबे समय के लिए पेंडिंग हो जाती है. आपकी ज़िंदगी लोन चुकाने में क़ुर्बान हो जाती है. 



तो क्या करें? 
ख़ुद से सबसे पहले यह सवाल पूछें क्या ज़िंदगी इतनी सस्ती है? बेशक नहीं. ज़ाहिर है, आज की दुनिया में लोन से बच पाना नामुमक़िन जैसा है तो ऐसे में आपके पास केवल एक ही रास्ता है और वह है थोड़ी-सी समझदारी. आप यह देखें कि आख़िर लोन ले किसलिए रहे हैं. आपको कम से कम ऐसी चीज़ों के लिए लोन नहीं लेना चाहिए, जिसकी क़ीमत फ़्यूचर में ज़ाहिर तौर पर कम होनेवाली हो. जैसे-महंगी गाड़ी, फ़ोन या कोई दूसरा गैजेट. वहीं अगर घर ख़रीदने के लिए लोन लेना हो तो ज़रूर लें, क्योंकि घर की क़ीमत कम नहीं होनेवाली. आपको यह ध्यान में रखना होगा कि आपने सही क़ीमत पर घर लिया हो, मार्केट रेट से ज़्यादा पर नहीं. वैसे होम लोन की ईएमआई के बारे में विशेषज्ञ यह कहते हैं कि वह आपकी टोटल इनकम के 45% से अधिक न हो.


तीसरी ग़लती: यह मानकर चलना कि मेरे साथ कुछ बुरा हो ही नहीं सकता 
यह भी इंसानी फ़ितरत से जुड़ी ग़लती है कि हम कभी मानते ही नहीं कि दुर्घटनाएं हमारे साथ भी हो सकती हैं. बुरी से बुरी दुर्घटना अक्सर दूसरों के साथ हो जाती हैं, पर शुक्र है हमारे साथ कुछ नहीं होता. इसी सोच का नतीजा है कि हम पर्याप्त इंश्योरेंस नहीं लेते. और दुर्भाग्य से जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है तो हम बुरी तरह मुसीबत में पड़ जाते हैं. मान लीजिए आप या आपके घर का कोई सदस्य बीमार हो गया और आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है तो क्या होगा? आपको अचानक ही आर्थिक परेशानियां घेर लेंगी. कई रिसर्च कहते हैं कि अचानक आई बीमारियां भारत में ग़रीबी को बढ़ाने की महत्वपूर्ण कारक हैं. ज़रा कल्पना करें, अगर बीमारी से भी बुरा कुछ हुआ तब आपके घर की क्या हालत होगी! भले ही आप युवा और स्वस्थ हों, पर जीवन बीमा के साथ-साथ हेल्थ इंश्योरेंस भी कराएं. 



तो क्या करें? 
इंश्योरेंस लेने में ज़रा भी आना-कानी न करें. भले ही बीमा आग्रह की विषय वस्तु हो, पर किसी के द्वारा आग्रह किए जाने का इंतज़ार न करें. आपको अपनी ज़रूरत के अनुसार इंश्योरेंस पॉलिसी ख़रीद लेनी चाहिए. बीमा से न केवल आपको बुरे समय में आर्थिक मदद मिलती है, बल्कि कई पॉलिसीज़ आपकी टैक्स सेविंग में भी मददगार होती हैं. फिर भी पॉलिसी ख़रीदते समय अपनी ज़रूरत को प्राथमिकता दें, न कि इस बात को कि आपको टैक्स में छूट कितनी मिलेगी. 


अक्सर हम इस दुविधा में होते हैं कि इंश्योरेंस का कवर कितना होना चाहिए? एक्स्पर्ट्स की मानें तो कवर आपकी सालाना आय का कम से कम चार से पांच गुना होना ही चाहिए. ध्यान रखें कि आप जितनी कम उम्र में इंश्योरेंस लेंगे आपको प्रीमियम भी उतना कम देना होगा. 


चौथी ग़लती: बिना सोचे समझे निवेश करना 
आपने कहीं सुना था कि शेयर मार्केट में पैसे लगाना फ़ायदे का सौदा है. वहां अच्छा-ख़ासा रिटर्न मिलता है. आपने अभी-अभी नौकरी शुरू की है और निवेश के बारे में भी सीरियस हैं. यह तो एक अच्छी निशानी होनी चाहिए. पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. कभी भी केवल सुनी-सुनाई बातों के आधार पर या किसी दोस्त की राय पर अपनी गाढ़ी कमाई का निवेश न करें. आपको अच्छे से सोच समझकर, अपने टार्गेट्स के अनुसार निवेश करना चाहिए. निवेश करते समय आपकी उम्र भी बहुत मायने रखती है. कहने का मतलब है, 20 से 30 की उम्र तक जहां पैसे लगाना ठीक था, ज़रूरी नहीं है कि आगे भी वहां पैसे निवेश करने में समझदारी है. 



तो क्या करें?
जिस तरह जीवन के हर स्टेज पर हमारी प्राथमिकताएं बदलती रहती हैं, उसी तरह समय-समय पर अपने पोर्टफ़ोलियो की समीक्षा भी करनी चाहिए. युवावस्था में आपको रि‌स्की फ़ंड्स में पैसे लगाने से नहीं झिझकना चाहिए. उम्र के तीसरे दशक में घर ख़रीदने जैसे बड़े फ़ैसले ले लेने चाहिए. उससे अधिक देरी सही नहीं मानी जाती. वहीं उम्र के चौथे दशक में गैरेंटीड रिटर्न वाली जगहों पर निवेश करना चाहिए. आप अचानक बड़ा अमाउंट खोने का रिस्क नहीं ले सकते. कहने का मतलब है अपना हर पैसा काफ़ी सोच समझकर निवेश करें. किसी की बातों में आकर या किसी से प्रभावित होकर निवेश करने से अच्छा है, पैसे को फ़िक्स्ड डिपॉज़िट जैसे पारंपरिक जगहों पर ही रहने दें.







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