सप्तमी के दिन होती है माँ कालरात्रि की पूजा, दुष्टों का दमन और भक्तों को वरदान देनेवाली माता की ऐसे करें प्रसन्न!

Singh Anchala
अश्विन शुक्लपक्ष की सप्तमी अर्थात नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें स्‍वरूप ‘कालरात्र‍ि’ की पूजा की परंपरा है। देवी पुराण में उल्लेखित है कि माता गौरी की शक्ति का यह स्वरूप शत्रुओं का सर्वनाश करने वाला होता है। भगवान विष्णु के कान से उत्पन्न मधु कैटभ का मर्दन करने वाली शक्ति मां कालरात्रि ही हैं। दुर्गा सप्तशती में वर्णित है कि शारदीय नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की पूरी निष्ठा एवं विधि-विधान से पूजा करने पर मां प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मान्यता है कि कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को भूत, प्रेत अथवा किसी भी तरह की बुरी शक्तियां परेशान नहीं कर सकती।

मां कालरात्र‍ि का अलौकिक स्‍वरूप
सप्तशती और देवी पुराण में मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयाक्रांत करने वाला दर्शाया गया है। वास्तव में उनका यह स्वरूप दुष्ट, नराधम एवं पापियों का सर्वनाश करने वाला है। जबकि अपने भक्तों के लिए वह एक ममतामयी माँ समान ही हैं। भक्तों को भी माँ कालरात्रि का काला रंग कांतिमय, दिव्य एवं अलौकिक महसूस होता है। इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं, जिनसे विद्युत किरणें निकलती-सी प्रतीत होती हैं। मां कालरात्रि के खुले-बिखरे हवा में लहरा रहे हैं। गले में विद्युत-सी चमकती माला है। मां की नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर की ऊपरी भुजा से भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बाईं भुजा में मां ने तलवार और खड्ग धारण की हुई है। शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गधे पर विराजमान हैं। हालांकि उनका विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है, इसीलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।

देवी कालरात्रि के कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयं पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततं पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥

पूजा का शुभ मुहू्र्त (5 अक्टूबर 2019)
अमृत काल मुहूर्त-
सुबह 6 बजकर 20 मिनट से 8 बजकर 20 मिनट तक (5 अक्टूबर 2019)

अभिजीत मुहूर्त-
सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक (5 अक्टूबर 2019)

माता कालरात्रि की पूजा-विधि
मां कालरात्रि की पूजा ब्रह्ममुहूर्त में ही की जाती है, जबकि तांत्रिक मां की पूजा आधी रात में करते हैं। इसीलिए मां कालरात्रि की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करने के पश्चात मां का ध्यान और व्रत का संकल्प लेते हुए पूरे दिन व्रत रहना चाहिए। इसके पश्चात एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर इस पर मां कालरात्रि का चित्र अथवा प्रतिमा स्थापित करें। अब मां कालरात्रि को कुमकुम, लाल पुष्प, रोली आदि अर्पित करें। माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके समक्ष तेल का दीपक प्रज्जवलित करें। मां को गुड़ बहुत पसंद है, अतः उन्हें गुड़ का भोग ही लगाएं। इसके बाद मां के मंत्रों का जाप करें या सप्तशती का पाठ करें। पूजन विधि पूरी होने के बाद मां की कथा सुनें और धूप-दीप से मां की आरती उतारें। देवी को भोग लगाएं और मां से पूजा पाठ में जाने-अनजाने में हुई गल्तियों के लिए छमा मांगें। अब माँ के सामने चढ़े हुए आधे गुड़ का प्रसाद परिवार में वितरित करें। बाकी आधा गुड़ किसी ब्राह्मण को दान कर दें।

ध्यान रहे कि पूजा करते वक्त काले रंग का वस्त्र न पहनें और ना ही किसी को नुकसान पहुंचाने के ध्येय से माँ कालरात्रि का पूजा करें।


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