1991 की भारत-पाक सैन्य संधि पर सियासी संग्राम, भाजपा ने कांग्रेस को बताया "दोहरे चरित्र" का प्रतीक
क्या था 1991 का भारत-पाकिस्तान सैन्य समझौता?
6 अप्रैल 1991 को नई दिल्ली में भारत और पाकिस्तान के बीच "Advance Notice of Military Exercises, Manoeuvres, and Troop Movements" नामक समझौता हुआ था। इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच पारदर्शिता बढ़ाना और अनजाने में युद्ध की आशंका को कम करना था।इस समझौते की प्रमुख शर्तें थीं:
- पूर्व सूचना देना: दोनों देशों को एक-दूसरे को प्रमुख सैन्य अभ्यासों और सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों की आवाजाही की पूर्व सूचना देनी होगी।
- सूचना का माध्यम: सूचना कूटनीतिक चैनलों के माध्यम से तय समयसीमा के अंदर साझा की जाएगी।
- सीमा से दूरी: सैन्य गतिविधियाँ अंतरराष्ट्रीय सीमा के एक निश्चित दायरे के भीतर नहीं होनी चाहिए।
- रणनीतिक दिशा: कोई भी सैन्य अभ्यास दूसरे देश की ओर लक्षित नहीं होना चाहिए और सीमाओं के पास कोई सैन्य जमावड़ा नहीं किया जाएगा।
भाजपा बनाम कांग्रेस: राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
निशिकांत दुबे ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस सरकार का समर्थन कांग्रेस ने 1991 में किया था, उसी दौरान पाकिस्तान के साथ सैन्य जानकारी साझा करने का समझौता हुआ था। उन्होंने पूछा, "क्या अब आप उस समय की संधि को देशद्रोह कहेंगे?"दुबे ने राहुल गांधी के जयशंकर पर उठाए सवालों को "पाकिस्तानी वोट बैंक" को साधने की राजनीति बताया और कहा कि विदेश मंत्री पर इस तरह के आरोप लगाना अनुचित है।कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि फरवरी 1991 के अंत तक उन्होंने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और आम चुनावों की घोषणा हो चुकी थी। उन्होंने दुबे के आरोपों को "झूठा और भटकाने वाला" बताया।
यह सियासी बहस तब शुरू हुई जब राहुल गांधी ने 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर एस. जयशंकर से सवाल पूछा था कि क्या पाकिस्तान को पहले से जानकारी देने के कारण भारत को विमान की क्षति उठानी पड़ी?
राहुल गांधी ने X पर लिखा, "जयशंकर की चुप्पी ही सबसे बड़ा संकेत है। कितने भारतीय विमान हमने खो दिए क्योंकि पाकिस्तान को पहले से खबर थी? यह चूक नहीं, अपराध था। देश को सच जानने का हक है।"