जब Kalpana Chawla ने अंतरिक्ष में भारत का नाम किया रोशन, बिताए थे 372 घंटे

Kumar Gourav

एक समय था जब लड़कियों को घर की चारदीवारी के बाहर नहीं जाने दिया जाता था मगर बदलते समय के साथ अभिभावकों की सोच बदली और आज के इंटरनेट युग में अब लड़कियां अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी है। यदि अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला के बारे में बात की जाए तो उसमें सबसे पहला नाम कल्पना चावला का ही आएगा। अंतरिक्ष यात्रा पर जाने वाली वह दूसरी भारतीय महिला थीं। कल्पना चावला से पहले भारत के राकेश शर्मा 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में गए थे। कल्पना के बारे में एक खास बात यह भी है कि उन्होंने 8वीं कक्षा में ही अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर कर दी थी। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि कल्पना एक डॉक्टर या टीचर बनें। कल्पना ने महज 35 साल की उम्र में पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं लगा देश ही नहीं दुनिया को चौंका दिया था।

 

हरियाणा में हुआ था जन्म

कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को हरियाणा के करनाल में हुआ था। वो वह चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। बचपन में कल्पना को 'मोंटू' के नाम से बुलाया जाता था। अपने नाम के अनुरूप ही कल्पना ने दुनिया को ये बताया कि यदि आसमान में जाने की कल्पना कर रहे हो तो वहां जाने के लिए पूरा प्रयास भी करो। आज देश की हर लड़की के लिए कल्पना एक आदर्श हैं। मोंटू इससे भी एक कदम आगे बढ़ गईं और वह अपनी कल्पनाओं के साथ ही मरकर अमर हो गईं। 

 

 

1997 में शुरू किया था पहला अंतरिक्ष मिशन

कल्पना चावला ने आज ही के दिन 19 नवंबर 1997 को अपना पहला अंतरिक्ष मिशन शुरू किया था। तब उनकी उम्र महज 35 साल थी। उन्होंने 6 अंतरिक्ष यात्रियों के साथ स्पेस शटल कोलंबिया STS-87 से उड़ान भरी। अपने पहले मिशन के दौरान कल्पना ने 1.04 करोड़ मील सफर तय करते हुए करीब 372 घंटे अंतरिक्ष में बिताए थे। कल्पना चावला की शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन में हुई थी। हरियाणा के पारंपरिक समाज में कल्पना जैसी लड़की के ख्वाब अकल्पनीय थे। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की पढ़ाई पूरी की। तब तक भारत अंतरिक्ष में काफी पीछे था, लिहाजा सपनों को पूरा करने के लिए उनका नासा जाना जरूरी था। इसी उद्देश्य से वह साल 1982 में अमेरिका चली गईं। उन्होंने यहां टैक्सस यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एम.टेक किया। फिर यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की।

 

1988 में पहुंची थीं नासा

साल 1988 में कल्पना चावला ने नासा ज्वॉइन किया। यहां उनकी नियुक्ति नासा के रिसर्च सेंटर में हुई थी। इसके बाद मार्च 1995 में वह नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं थीं। करीब आठ महीनों के कड़े प्रशिक्षण के बाद उन्होंने 19 नवंबर 1997 को अपना पहला अंतरिक्ष मिशन शुरू किया तो केवल नासा ही नहीं, भारत समेत पूरी दुनिया ने तालियां बजाकर और शुभकामनाएं देकर उनके दल को इस यात्रा पर रवाना किया था।

 

41 की उम्र में की दूसरी व अंतिम यात्रा

1 फरवरी 2003 को अंतरिक्ष इतिहास के सबसे मनहूस दिनों में माना जाता है। यही वो दिन था जब भारत की बेटी कल्पना चावला अपने 6 अन्य साथियों के साथ अंतरिक्ष से धरती पर लौट रहीं थीं। उनका अंतरिक्ष यान कोलंबिया शटल STS-107 धरती से करीब दो लाख फीट की ऊंचाई पर था। इसकी रफ्तार करीब 20 हजार किलोमीटर प्रति घंटा थी। अगले 16 मिनट में उनका यान अमेरिका के टैक्सस शहर में उतरने वाला था। पूरी दुनिया बेसब्री से यान के धरती पर लौटने का इंतजार कर रही थी। तभी एक बुरी खबर आई कि नासा का इस यान से संपर्क टूट गया है। इससे पहले कि लोग कुछ समझ पाते इस अंतरिक्ष यान का मलबा टैक्सस के डैलस इलाके में लगभग 160 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैल गया। इस हादसे में कल्पना चावला सहित सातों अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई।

 

 

अमेरिकी नागरिक बन गई कल्पना

एम.टेक की पढ़ाई के दौरान ही कल्पना को जीन-पियरे हैरिसन से प्यार हो गया था। बाद में दोनों ने शादी भी कर ली। इसी दौरान उन्हें 1991 में अमेरिका की नागरिकता भी मिल गई। इस तरह भारत की बेटी अमेरिका की होकर रह गई, लेकिन उनका भारत से संबंध हमेशा बना रहा। देश से जुड़ी होने के कारण अंतरिक्ष में किए गए तमाम कामों को भारत की लड़कियां अपने लिए आदर्श मानती है।  साल 2000 में कल्पना को दूसरे अंतरिक्ष मिशन के लिए भी चुन लिया गया था। यह अंतरिक्ष यात्रा उनकी जिंदगी का आखिरी मिशन साबित हुआ। उनके इस मिशन की शुरुआत ही तकनीकी गड़बड़ी के साथ हुई थी। इसकी वजह से इस उड़ान में विलंब भी होता रहा। आखिरकार 16 जनवरी 2003 को कल्पना सहित 7 यात्रियों ने कोलंबिया STS-107 से उड़ान भरी। अंतरिक्ष में 16 दिन बिताने के बाद वह अपने 6 अन्य साथियों के साथ 3 फरवरी 2003 को धरती पर वापस लौट रही थीं। लेकिन उनकी यह यात्रा कभी खत्म ही नहीं हुई। धरती की कक्षा में प्रवेश करने से पहले अंतरिक्ष यान हादसे का शिकार हो गया।

 

इसलिए हुआ था हादसा

अंतरिक्ष यान के दुर्घटनाग्रस्त होने से भारत से लेकर इजरायल और अमेरिका तक दुख में डूब गए थे। वैज्ञानिकों के मुताबिक- जैसे ही कोलंबिया ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी उष्मारोधी परतें फट गईं और यान का तापमान बढ़ने से यह हादसा हो गया, जिसमें सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई। मिशन कमांडर रिक हसबैंड के नेतृत्व में दुर्घटनाग्रस्त होने वाले कोलंबिया शटल यान STS-107 ने उड़ान भरी थी। टीम में एक इजरायली वैज्ञानिक आइलन रैमन भी शामिल थे। रैमन अंतरिक्ष में जाने वाले पहले इजरायली थे। उनके अलावा इस टीम में विलियम मैकोल, लॉरेल क्लार्क, आइलन रैमन, डेविड ब्राउन और माइकल एंडरसन शामिल थे। 

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